एक मुद्दत से आरज़ू थी फ़ुरसत की, मिली तो इस शर्त से, की किसी से ना मिलो ।

GULZAR Sahab on lock down, beautiful lines.

एक मुद्दत से आरज़ू थी फ़ुरसत की,
मिली तो इस शर्त से, की किसी से ना मिलो ।

शहरों का यूँ वीरान होना, कुछ यूँ ग़ज़ब कर गयी,
बरसों से पड़े गुमसुम घरों को आबाद कर गयी।

यह कैसा समय आया कि, दूरियाँ ही दवा बन गयी,
ज़िंदगी में पहली बार ऐसा वक्त आया, इंसान ने ज़िंदा रहने के लिए कमाना छोड़ दिया

घर गुलज़ार, सूने शहर
बस्ती बस्ती में क़ैद हर हस्ती हो गयी,
आज फिर ज़िंदगी महंगी और दौलत सस्ती हो गयी I…..👌