*अपने कोन ?*
अपना बनाकर दिलसे लगा गयी तू,
कस्ती बनकर किनारा दिखा गयी तू ।
कहती थी,बनूँगी सहारा तेरा,
मंज़िल दिखाकर भँवर में फ़सा गयी तू।
करती थी चोरी चोरी प्यार लोंगोसे डरकर,
मदमस्त मुजे बनाकर मेरा डर चुरा गयी तू।
बनी रही खुद तू डरपोक,
ज़ुठी बातो में पिरो गयी तू,
हमसफ़र हमराही बनाकर,
मुझे सारी राहे भुला गयी तू ।
किया था वादा,बाटूंगी दर्द तेरा,
बांटना तो दूर दर्द बनकर दवा ले गयी तू ।
सुबहमें अच्छी बात करके,
शाम को जिंदगी बरबाद कर गयी तू ।
कवि – जयेश श्रीमाली पलियड ।